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व॒यम॑ग्ने वनुयाम॒ त्वोता॑ वसू॒यवो॑ ह॒विषा॒ बुध्य॑मानाः। व॒यं स॑म॒र्ये वि॒दथे॒ष्वह्नां॑ व॒यं रा॒या स॑हसस्पुत्र॒ मर्ता॑न् ॥६॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

vayam agne vanuyāma tvotā vasūyavo haviṣā budhyamānāḥ | vayaṁ samarye vidatheṣv ahnāṁ vayaṁ rāyā sahasas putra martān ||

पद पाठ

व॒यम्। अ॒ग्ने॒। व॒नु॒या॒म॒। त्वाऽऊ॑ताः। व॒सु॒ऽयवः॑। ह॒विषा॑। बुध्य॑मानाः। व॒यम्। स॒ऽम॒र्ये। वि॒दथे॑षु। अह्ना॑म्। व॒यम्। रा॒या। स॒ह॒सः॒। पु॒त्र॒। मर्ता॑न् ॥६॥

ऋग्वेद » मण्डल:5» सूक्त:3» मन्त्र:6 | अष्टक:3» अध्याय:8» वर्ग:16» मन्त्र:6 | मण्डल:5» अनुवाक:1» मन्त्र:6


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर प्रजाविषय को कहते हैं ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे (सहस्पुत्र) बल की पालना करनेवाले (अग्ने) अग्नि के सदृश तेजस्वी राजन् ! (त्वोताः) आपसे रक्षा किये गये (वसूयवः) अपने धन की इच्छा करनेवाले (हविषा) दान से (बुध्यमानाः) बोध को प्राप्त होते हुए (वयम्) हम लोग आपसे रक्षा की (वनुयाम) याचना करें और (वयम्) हम लोग (अह्नाम्) दिनों के (विदथेषु) विशेष ज्ञानसम्बन्धी व्यवहारों में (समर्ये) संग्राम के बीच प्रवृत्त होवें और (वयम्) हम लोग (राया) धन से (मर्त्तान्) मनुष्यों को याचें अर्थात् मनुष्यों से माँगें ॥६॥
भावार्थभाषाः - हे मनुष्यो ! विद्वानों से श्रेष्ठ गुणों की आप लोग प्रार्थना करें तो स्वयं प्रजायें धनवती होवें ॥६॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनः प्रजाविषयमाह ॥

अन्वय:

हे सहसस्पुत्राग्ने ! त्वोता वसूयवो हविषा बुध्यमाना वयं त्वत्तो रक्षणं वनुयाम वयमह्नां विदथेषु समर्ये प्रवर्त्तेमहि वयं राया मर्त्तान् वनुयाम ॥६॥

पदार्थान्वयभाषाः - (वयम्) (अग्ने) अग्निरिव राजन् (वनुयाम) याचेमहि (त्वोताः) त्वया रक्षिताः (वसूयवः) आत्मनो धनमिच्छवः (हविषा) दानेन (बुध्यमानाः) (वयम्) (समर्ये) सङ्ग्रामे (विदथेषु) विज्ञानव्यवहारेषु (अह्नाम्) (वयम्) (राया) धनेन (सहसस्पुत्र) बलस्य पालक (मर्त्तान्) मनुष्यान् ॥६॥
भावार्थभाषाः - हे मनुष्या ! विद्वद्भ्यः सद्गुणान् भवन्तो याचेरंस्तर्हि स्वयं प्रजा धनाढ्या भवेयुः ॥६॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - हे माणसांनो! विद्वानांजवळ तुम्ही श्रेष्ठ गुणांची याचना करा. ज्यामुळे प्रजा धनवान व्हावी. ॥ ६ ॥